Thursday, July 22, 2010

अनकही बाते


मै मिलना चाहता हूँ , उन यादों से जिनमे बचपन की कुछ बाते हैं ,

कुछ यादें है कुछ वादें हैं

अपने दोस्तों से अपने खेतो से अपने खलिहानों से जो किया था मैंने कभी उनसे ,

जो आज भी अधूरे हैं।

मै मिलना चाहता हूँ ,

उन गली मोहल्लो से खेतो की पगडंडियो से और गावँ के उस स्कुल से ,

जहाँ सिखा था लिखने का ज्ञान कभी ।

मै मिलना चाहता हूँ उन बनबेर के झुर्मुठो से ,

उन जंगली आम के पेडों से जो अपने से थे कभी अपने नहीं है अभी।
मै मिलना चाहता हूँ उन यादों से ।

मेरी पहली कविता


अपने बचपन के झुरमुट से लेकर आया हु ,

कुछ मीठे फल कुछ खटे फल

बन बेरो के जैसे फल

कुछ फुल भी है :

महकाते है जो मेरे मन को

मेरे जीवन को

मेरे बचपन की यादो को सजाती

मेरे मन की मेरी यादें ।



Saturday, June 5, 2010

sukriya

मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए ब्लॉग जगत का धन्यवाद ।

Tuesday, May 11, 2010

........मुझे बेर के पेड़ के निचे बिठाने के बाद उन लोगो ने मुझेसे मेरा नाम पूछा मैंने धीरे से रोते हुवे बताया विवेक। फिर उन लोगो ने मुझसे मेरे दादा जी का नाम पूछा मैंने बताया । वे तिन थे ,फिर उन लोगो ने रोड की और देखा गावं के कुछ लोग अभी भी रोड पर थे ,कुछ लोगो ने एक दो फैर भी किया ,चुकी उन दिनों मेरे गावं के अधिकांस लोग लिसेंस बंधूक या कट्टा रखते थे । वे लोग आपस में बातें करते रहे रात गहरी होती गयी ,गावं के लोग भी सर्ड्क पर से वापस अपने घरो में चले गए । उन लोगो ने मुझसे बैठे रहने को कह कर खुद को खेतो के फसल में छुपाते हुवे वह से भाग गए । थोड़ी देर तक चुप चाप बैठे रहने के बाद मै अपने हाथो को खोलना सुरु किया और फिर थोड़ी देर में अपने हाथो को खोलने के बाद अपने पैरो को भी खोला ,और वहा से सीधे अपने घर की और भागा सर्ड्क पर अब कोई नहीं था । मै चुप चाप अपने घर की और चला । सर्ड्क से मेरा घर नजदीक ही है । मै अपने घर के सामने जब पंहुचा तो दादाजी को घर से बहार आते हुवे देखा । मै दौढ़ कर उनके पास पंहुचा और उनसे लिपट कर रोने लगा । घर गया वहा भी सभी रो रहे थे । सब ने रहत की साँस ली । मैंने रात में सिर्फ धुध पिया और सो गया । सुबह का नजर कुछ और था , गावं के बहुत से लोग मुझे देखने आये हुवे थे ,पुलिश भी आई पर मै किडनापर क्र बारे में कुछ भी नहीं बता पाया । सबने अपने मुह पर कपडा बंधा हुवा था ,पुलिश चली गयी ,गावं वाले चले गए ,मै अपने घर में था ,सभी खुस थे ।

Tuesday, April 20, 2010

मेरी यादे .......

मै खेतो से मटर तोड़ रहा था की अचानक किसी ने पीछे से आकर मुझे पकर लिया और मेरे मुहं पर पट्टी बांध दिया और बोला की "चुप -चाप मेरे साथ चल नहीं तो चाकू मार दूंगा " उसने एक बड़ा सा चाकू मुझे दिखाया ,मै काफी डर गया चक कर भी मै आवाज नहीं निकल पा रहा था । मेरे हाथो को पीछे करके बांध दिया गया वे मुझे खेतो की मेढ़ो पर चलाते हुवे गावं से थोड़ी दूर के एक गेहू के खेत के पास ले गए जिसके एक कोने पर बेर का पेढ़ था । वह मै अपने दोस्तों के साथ बेर खाने कभी -कभी जाया करता था ,चुकी खेत के उस कोने पर बेर का पेढ़ था ईस कारन वहा की फशल नहीं थी । वहा काफी खुली जगह थी पर पेढ़ की वजह से वो गावं की तरफ से दिखाई नहीं पढती थी । तब तक काफी अँधेरा हो चूका था ,मै इतनी देर तक बहार कभी नहीं रहा करता था । घर के लोग मुझे खोजने लगे ,पर मेरे बारे मै किसी को कुछ भी पता नहीं चला । सभी लोग मुझे आवाज लगाने लगे । पुरे गावं मे मेरी खोज सुरु हो गई , गावं के कई कुवें जिनमे पानी था मुझे खोजा गया मेरे दादाजी उनमे उतर- उतर कर मुझे खोज रहे थे । मेरे कही पता नहीं चलने पर गावं की पुलिश चौकी को खबर किया गया । मेरे घर मे मेरी दादीमाँ ,मेरी बुवा मेरी चची सब का रो -रो कर बुरा हाल हो गया था। मेरे नहीं मिलने पर गावं के काफी लोग वापस अपने अपने घर वापस लौट गए । सब ने यही सोचा की मै किडनैप कर लिया गया हूँ ।

Friday, April 16, 2010

मेरी यादें


मै अपने गाँव के स्कूल में पचवी तक पढ़ा ,उस दौरान कई ऐसी घटनाएँ हुई जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया । मै उन घटनाओ को कभी भुला नहीं सकता । अपने गांव में मै काफी कम घुमा करता था ,अपने घर के आस पास के कुछ लोगो को छोड़ कर मै पुरे गाँव के बहुत से लोगो को पहचानता भी नहीं था। मै आठ साल का था,(क्लास ३)

वो सर्दिओं के ख़त्म होने के दिन थे । आम के पेधों मंजर नजर आने लगे थे । खेतो में मटर की बलिया पकने को थी । मै सांम के वक्त अपने घर के समीप के खेत में मटर तोड़ने अकेला गया था । घर पे किसी को कुछ कहे बिना । मेरे घर में उस दिन बहुत से लोग थे ,मेरी बुआ आई हुई थी और मेरे सारे फुफेरे भाई -बहन ,घर में काफी चहल -पहल थी । और मै अकेला चला गया । घर पे किसी को कुछ भी कहे बिना । साम हो चुकी थी अँधेरा होने को था ।

Saturday, March 6, 2010

Thursday, January 7, 2010

new year

hello happy new year