Thursday, July 22, 2010

अनकही बाते


मै मिलना चाहता हूँ , उन यादों से जिनमे बचपन की कुछ बाते हैं ,

कुछ यादें है कुछ वादें हैं

अपने दोस्तों से अपने खेतो से अपने खलिहानों से जो किया था मैंने कभी उनसे ,

जो आज भी अधूरे हैं।

मै मिलना चाहता हूँ ,

उन गली मोहल्लो से खेतो की पगडंडियो से और गावँ के उस स्कुल से ,

जहाँ सिखा था लिखने का ज्ञान कभी ।

मै मिलना चाहता हूँ उन बनबेर के झुर्मुठो से ,

उन जंगली आम के पेडों से जो अपने से थे कभी अपने नहीं है अभी।
मै मिलना चाहता हूँ उन यादों से ।

मेरी पहली कविता


अपने बचपन के झुरमुट से लेकर आया हु ,

कुछ मीठे फल कुछ खटे फल

बन बेरो के जैसे फल

कुछ फुल भी है :

महकाते है जो मेरे मन को

मेरे जीवन को

मेरे बचपन की यादो को सजाती

मेरे मन की मेरी यादें ।