Friday, April 27, 2018
Monday, March 31, 2014
Monday, November 12, 2012
kya sochta hai?
ऐ मेरे मन क्या सोचता है ,
क्यों आज तू इतना उदास है ,
क्यों आज तू इतना निराश है ,
क्या बात है ,
क्यों तू इतना हताश है ,
कौन सा मंजिल छुट गया ?
या रास्ते में ही है तू टूट गया !
क्यों है ऐसा सोचता ,
"की तू है पीछे छुट गया"
तू राम कृष्ण और बुद्ध नहीं है ,
गुरु गोविन्द का शिष्य नहीं है ,
चिंता मत कर चिंतन कर तू और बस अपना तू कर्म किये जा ,
इस दुनिया को जी भर के जिए जा ,
हर नये सवेरे को तू अपना बना ,
ऐ मेरे मन क्या सोचता है ,
चल एक नई उम्मीद से एक नए विशवाश से ,
ऐ मेरे मन मेरे साथ तू चल,
तेरी मंजिल का पता मै बतलाता हूँ ,
तू बस उस पथ पर चला चल। ऐ मेरे मन क्या सोचता है।
क्यों आज तू इतना उदास है ,
क्यों आज तू इतना निराश है ,
क्या बात है ,
क्यों तू इतना हताश है ,
कौन सा मंजिल छुट गया ?
या रास्ते में ही है तू टूट गया !
क्यों है ऐसा सोचता ,
"की तू है पीछे छुट गया"
तू राम कृष्ण और बुद्ध नहीं है ,
गुरु गोविन्द का शिष्य नहीं है ,
चिंता मत कर चिंतन कर तू और बस अपना तू कर्म किये जा ,
इस दुनिया को जी भर के जिए जा ,
हर नये सवेरे को तू अपना बना ,
ऐ मेरे मन क्या सोचता है ,
चल एक नई उम्मीद से एक नए विशवाश से ,
ऐ मेरे मन मेरे साथ तू चल,
तेरी मंजिल का पता मै बतलाता हूँ ,
तू बस उस पथ पर चला चल। ऐ मेरे मन क्या सोचता है।
Sunday, August 12, 2012
Thursday, July 22, 2010
अनकही बाते
मै मिलना चाहता हूँ , उन यादों से जिनमे बचपन की कुछ बाते हैं ,
कुछ यादें है कुछ वादें हैं
अपने दोस्तों से अपने खेतो से अपने खलिहानों से जो किया था मैंने कभी उनसे ,
जो आज भी अधूरे हैं।
मै मिलना चाहता हूँ ,
उन गली मोहल्लो से खेतो की पगडंडियो से और गावँ के उस स्कुल से ,
जहाँ सिखा था लिखने का ज्ञान कभी ।
मै मिलना चाहता हूँ उन बनबेर के झुर्मुठो से ,
उन जंगली आम के पेडों से जो अपने से थे कभी अपने नहीं है अभी।
मै मिलना चाहता हूँ उन यादों से ।मेरी पहली कविता
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