Wednesday, December 23, 2009

डी नेक्स्ट डे

में अपने गावं के स्कूल के दिनों को बहुत मिस करता हूँ ।
उन दिनों की बात ही कुछ और थी , स्कूल के बगल के वो बगीचा वो बेल का पेड़ बन बैर की झारिया ,और उन सब में मेरा फेवरेट आम का पेड़ जिसके बगल में एक सुखा कुंवा था । उस कुंवे में पानी सिर्फ बरसात के दिनों में ही हुवा करता था बाकि के नो महीने वो सुखा ही रहता था . पुराने ज़माने में उसे आस- पास के बगीचे के पटवन के लिए इस्तमाल किया जाता था । पर अब बगीचों के नाम पर कुछ तार के पेड़ कुछ बेल शीशम और बन बेर की झाड़िया ही सेष थी ,इसलिए कुएं की सफाई नहीं होती थी और वो सुख गया था । पर हमारे लिए वो खेलने का साधन था । हम आम के पेड़ से एक पुवाल की रस्शी लटका कर उसमे उतरते और निकलते थे।

जाड़े के दिनों में अपने क्लास के लडको के साथ बन बेर के घने झाडियों से बेर तोड़ कर खाता था। उन खट्टे मिट्ठे बेरो के सामने अंगूर भी फीके लगते थे एक होड़ होती थी सब के बिच ज्यादा से ज्यादा बेर तोड़ने .की । बेर तोड़ने में हाथो में कटे भी खूब चुभते थे ,कभी कभी तो खून भी निकल जाता था और फिर घर पहुचने पर डाट भी परती थी । But the next day i come back to our gang.

Monday, December 21, 2009

INTRODUCTION

हेल्लो फ्रेंड्स नमस्कार

ये मेरी आपसे पहली मुलाकात है इसलिए



पहले तो मेरी जान थे अब दिल हुए हो आप सब कुछ गवा दिया है तो हासिल हुए हो आप कैसे
में भूल पाउँगा अहसान आपका
तूफान में मेरे वाश्ते शाहिल हुवे हो आप