में अपने गावं के स्कूल के दिनों को बहुत मिस करता हूँ ।
उन दिनों की बात ही कुछ और थी , स्कूल के बगल के वो बगीचा वो बेल का पेड़ बन बैर की झारिया ,और उन सब में मेरा फेवरेट आम का पेड़ जिसके बगल में एक सुखा कुंवा था । उस कुंवे में पानी सिर्फ बरसात के दिनों में ही हुवा करता था बाकि के नो महीने वो सुखा ही रहता था . पुराने ज़माने में उसे आस- पास के बगीचे के पटवन के लिए इस्तमाल किया जाता था । पर अब बगीचों के नाम पर कुछ तार के पेड़ कुछ बेल शीशम और बन बेर की झाड़िया ही सेष थी ,इसलिए कुएं की सफाई नहीं होती थी और वो सुख गया था । पर हमारे लिए वो खेलने का साधन था । हम आम के पेड़ से एक पुवाल की रस्शी लटका कर उसमे उतरते और निकलते थे।
जाड़े के दिनों में अपने क्लास के लडको के साथ बन बेर के घने झाडियों से बेर तोड़ कर खाता था। उन खट्टे मिट्ठे बेरो के सामने अंगूर भी फीके लगते थे एक होड़ होती थी सब के बिच ज्यादा से ज्यादा बेर तोड़ने .की । बेर तोड़ने में हाथो में कटे भी खूब चुभते थे ,कभी कभी तो खून भी निकल जाता था और फिर घर पहुचने पर डाट भी परती थी । But the next day i come back to our gang.
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